पद, 12th, हिंदी,सूरदास का जीवन परिचय, question answer.(मैया! मैं नहिं माखन खायो", "अबिगत गति कछु कहति न आवै", )By SUJEET SIR,9709622037,8340763695, ARARIA, BIHAR.

सूरदास का जीवनी परिचय

नाम – सूरदास (संवत् १५४०–१६४७ ई.)
जन्मस्थान – इनके जन्मस्थान के विषय में मतभेद है। प्रायः सीही गाँव (जिला फरीदाबाद, हरियाणा) को मानते हैं, कुछ विद्वान रुनकटा (आगरा के निकट) या रेणुका क्षेत्र भी बताते हैं।
जन्मकाल – लगभग १४७८ ई. माना जाता है।
पिता का नाम – रामदास सारस्वत।
जीवनपरिचय –

सूरदास बचपन से ही दृष्टिहीन (नेत्रहीन) थे।

इनकी प्रारम्भिक अवस्था बहुत कष्टपूर्ण रही।

बाद में ये महान वैष्णव भक्त और संप्रदायिक संत बने।

कहा जाता है कि महाप्रभु वल्लभाचार्य के शिष्यत्व में आकर इन्हें सही दिशा और आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ।

इन्होंने अपना अधिकांश जीवन वृन्दावन में यमुना तट पर भजन-कीर्तन करते हुए बिताया।

जीवन के अन्त तक इन्होंने अपने भजनों द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं, रासलीलाओं और वात्सल्य-भाव को गाकर जन-जन को भक्तिरस से सराबोर किया।


काव्य परिचय –

सूरदास ब्रजभाषा के महाकवि हैं।

इनकी रचनाएँ सूरसागर, सूरसारावली, साहित्यलहरी आदि नामों से प्रसिद्ध हैं।

'सूरसागर' में श्रीकृष्ण की बाल-लीलाओं और गोपियों के साथ रास-प्रसंगों का अत्यन्त भावपूर्ण वर्णन है।

इनकी भाषा ब्रजभाषा है, जिसमें सहज माधुर्य और संगीतात्मकता है।

काव्य में रस, छंद, अलंकार और भाव की अद्भुत संगति मिलती है।


विशेषताएँ –

सूरदास 'अष्टछाप' के प्रमुख कवियों में से एक थे।

इनकी कविता में मुख्यतः भक्ति रस और विशेषकर वात्सल्य रस की उत्कृष्ट व्यंजना हुई है।

इन्होंने भक्तिकाल की सगुण भक्ति धारा को समृद्ध किया।

सूरदास को "आश्रुप्रिया कवि" और "भक्तिकाल का सूर्यमुखी" कहा गया है।


मृत्यु – इनका निधन लगभग १५८३ ई. (संवत् १६४०) में हुआ माना जाता है।








पद

(1)

जागिए, ब्रजराज कुँवर, कँवल-कुसुम फूले । कुमुद-वृंद संकुचित भए, भृंग लता भूले । तमचुर खग-रोर सुनहु, बोलत बनराई । राँभति गो खरिकनि में, बछरा हित धाई । बिधु मलीन रवि प्रकास गावत नर नारी । सूर स्याम प्रात उठौ, अंबुज-कर-धारी ।।









भावार्थ

प्रातःकाल हो गया है। वृन्दावन में कमल के फूल खिले हैं। कमल-दल में केसर-रज भर गई है, भ्रमर अपनी प्रेयसी लताओं को भूलकर मधुर गूँजन कर रहे हैं। पक्षियों का कलरव सुनाई दे रहा है और वन की कोयलें बोल रही हैं। गौएँ रुष्ट होकर बछड़ों के पास भागी जा रही हैं। पुरुष और स्त्रियाँ भगवान विष्णु-मिलन हेतु सूर्य का उदय देखकर मंगलगीत गा रहे हैं।

हे श्रीकृष्ण ! आप भी अब जागिए, अपने हाथों में कमल पुष्प धारण कीजिए।





















(2)
जेंवत स्याम नंद की कनियाँ । कछुक खात, कछु धरनि गिरावत, छबि निरखति नंद-रनियाँ । बरी, बरा बेसन, बहु भाँतिनि, व्यंजन बिविध, अगनियाँ । डारत, खात, लेत अपनें कर, रुचि मानत दधि दोनियाँ । मिस्री, दधि, माखन मिस्रित करि, मुख नावत छबि धनियाँ । आपुन खात, नंद-मुख नावत, सो छबि कहत न बनियाँ । जो रस नंद-जसोदा बिलसत, सो नहिं तिहुँ भुवनियाँ । भोजन करि नंद अचमन लीन्हौ, माँगत सूर जुठनियाँ







भावार्थ

नन्द बाबा के घर में प्रातःकाल भोजन का समय है। कृष्ण जी बैठकर भोजन कर रहे हैं। कभी थोड़ा खाते हैं, कभी कुछ अन्न धरती पर गिरा देते हैं। इस मधुर छवि को नन्द की रानियाँ प्रेम से निहार रही हैं।

विभिन्न प्रकार के व्यंजन थालियों में सजे हैं। कृष्ण अपने हाथों से खाते हैं, कभी मटकी से दही और दूध निकालते हैं, कभी मक्खन में मिला कर खाते हैं। नन्दबाबा के मुख की ओर देखकर भोजन करते हैं। यह अद्भुत छवि शब्दों में वर्णन करने योग्य नहीं है। कवि सूरदास कहते हैं - जिस रस से नन्दनन्दन श्रीकृष्ण का यश प्रकट हो रहा है, वैसा रस तीनों लोकों में और कहीं नहीं है। भोजन कर के कृष्ण ने अचमन किया, और तब रात्रि की थकान मिटाने के लिए माँग की।









समग्र भाव

दोनों पदों में कवि सूरदास जी ने बालकृष्ण की प्रातःकालीन छवि का मनोहर वर्णन किया है -

पहले पद में सुबह की प्राकृतिक सुंदरता और कृष्ण को जगाने का अनुरोध है।

दूसरे पद में नन्दगृह में कृष्ण के भोजन करने की मोहक लीलाओं का चित्रण है।




Question answer 





(१) प्रथम पद में किस रस की व्यंजना हुई है?

👉 इसमें वात्सल्य रस की व्यंजना हुई है। नंद-रानियाँ (गोपियाँ) बालकृष्ण के भोलेपन और अटपटे व्यवहार को देखकर मातृसुलभ वात्सल्य भाव से पुलकित हो रही हैं।











(२) गायें किस ओर दौड़ पड़ीं?

👉 जब गोपियाँ नन्हें कृष्ण का मोहक रूप देख रही थीं, तो गायें भी उस ओर दौड़ पड़ीं जहाँ कृष्ण थे। उनका मन भी कृष्ण के प्रति आकृष्ट था।









(३) प्रथम पद का भावार्थ अपने शब्दों में लिखें।

👉 बालकृष्ण खाते-पीते समय कभी थोड़ा भोजन मुँह में डालते हैं, कभी गिरा देते हैं, कभी माटी उठाकर मुँह में डाल लेते हैं, और कभी नंदबाबा के मुख में भी भोजन डालते हैं। इस मोहक बाल-लीला को देखकर नंद-रानियाँ और गायें भी मंत्रमुग्ध हो जाती हैं।










(४) पठित पदों के आधार पर सूर के वात्सल्य वर्णन की विशेषताएँ लिखिए।

सूरदास जी ने बालकृष्ण की लीला का अत्यंत यथार्थ एवं हृदयस्पर्शी चित्रण किया है।

माता-पिता और गोपियों का स्वाभाविक वात्सल्य भाव प्रकट होता है।

सरल, सहज एवं बालसुलभ क्रियाओं से आनंद और माधुर्य उत्पन्न होता है।

बालकृष्ण की क्रियाओं में चंचलता, भोलेपन और अलौकिक आकर्षण झलकता है।











(५) काव्य-सौंदर्य स्पष्ट करें।

यहाँ वात्सल्य भाव की सरसता है।

चित्रात्मकता (बालकृष्ण का भोजन करना, गिराना, खिलाना आदि दृश्य मानो आँखों के सामने उपस्थित हो जाता है)।

सहजता और माधुर्य सूरकाव्य की विशेषता है।

मातृभावना और स्नेह की रस-गर्भित अभिव्यक्ति है।













(६) कृष्ण खाते समय क्या-क्या करते हैं?

कभी थोड़ा भोजन खाते हैं।

कभी भूमि पर गिरा देते हैं।

कभी देखते ही रह जाते हैं।

कभी नंदबाबा के मुख में भी भोजन डाल देते हैं।

कभी स्वयं खाते हैं, कभी माँगते हैं।

कभी माटी भी खा लेते हैं।


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