#संस्कृत #प्रत्यय #प्रत्यय के प्रकार #सभी परीक्षा में उपयोगी (“उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। क्षुरासन्नधारा निशिता दुरत्यद्दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति॥”)By Sujeet sir,9709622037,8340763695,Araria,Bihar .
प्रत्यय-
प्रति + अय् + अच् अर्थात् जो वर्णसमूह किसी धातु या शब्द के अन्त में जुड़कर नए अर्थ की प्रतीति कराते हैं, उस वर्णसमूह को प्रत्यय कहते हैं।
मुख्य रूप से प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं-
कृत् प्रत्यय
तद्धित प्रत्यय
धातु के अन्त में लगने वाले प्रत्यय दो प्रकार के होते हैं-
(i) कृत् प्रत्यय - क्त्वा, ल्यप्, तुमुन्, तव्यत्,
अनीयर् आदि ।
(ii) तिङ् प्रत्यय - तिप् तस् झि आदि 18 प्रत्यय ।
1. क्त्वा प्रत्यय
जब एक ही कर्ता द्वारा एक कार्य की समाप्ति के बाद दूसरी क्रिया की जाती है, तो समाप्ति क्रिया में क्त्वा प्रत्यय का प्रयोग होता है। इस प्रत्यय से बने हुए शब्द को पूर्वकालिक क्रिया कहते हैं।
छात्रः पठित्वा गृहं गच्छति । ( छात्र पढ़कर घर जाता है)
2. ल्यप् प्रत्यय
जब धातु से पहले कोई उपसर्ग होता है तो 'क्त्वा ' प्रत्यय के स्थान पर 'ल्यम्' आदेश हो जाता है।
'क्त्वा' और 'ल्यप्' प्रत्ययों से बनने वाले
शब्द अव्यय होते हैं और दोनों प्रत्यय
'पूर्वकालिक कृदन्त ' है
(i) छात्रः आगत्य पठति (छात्र आकर पढ़ता है)
(ii) मनुष्यः सर्वं विस्मृत्य सुखी भवति (मनुष्य सब कुछ भूलकर सुखी होता है)
३. तुमुन् प्रत्यय
> 'के लिए' यह अर्थ बताना हो तो धातुओं से 'तुमुन्' प्रत्यय लगाया जाता है।
जैसे- पठितुम् (पढ़ने के लिए) गन्तुम् (जाने के लिए), क्रेतुम् ( खरीदने के लिए) आदि ।
' तुमुन् ' प्रत्यय से बने शब्द अव्यय होते हैं, अतः इनके रूप नहीं चलते।
कर्ता जिस कार्य के निमित्त कोई क्रिया करता है उसे निमित्तार्थक क्रिया कहते हैं, निमित्तार्थक क्रिया में ही 'तुमुन्'
प्रत्यय लगाया जाता है।