पाठ :1 संस्कृत class 10th (“उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः।न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा:।”)BY SUJEET SIR 9709622037,8340763695 ARARIA BIHAR





पाठ 1

मंगलम
(उपनिषद )
   



1. हिरणमयेन पात्रेण सत्यस्यापिहित मुखम |
तवम पुषान्नापावृणु सत्यधर्माय दृष्टये ||








अर्थ :- हे प्रभु | सत्य का मुख सोने जैसा पात्र से ढका हुआ है । इसलिए सत्य धर्म की प्राप्ति के लिए मन से मोह माया को त्याग कर दे, तभी सत्य की प्राप्ति संभव है ।









2. अणोरणीयान महतो महीयान,
आत्मस्य जनतोनिर्हितो गुहायाम ।
तमक्रन्तु पश्यति वितिशोको,
धातुप्रसादान्माही मानमात्मन |







अर्थ :- जीवो के ह्रदय रूपी गुफा में अणु से भी सूक्ष्म महान से महान यह आत्मा विधमान रहती है। उस परम सत्य के दर्शन मात्र से जीव शोक रहित होकर परमात्मा एकाकार हो जाता है ।






3. सत्यमेव जयते नानृतम,
सत्येन पन्था विततो देवयान ।
येनाक्रमन्तयुषयो ह्याप्तकामा
,यत्र तत्र सत्यस्य पर निधानम ||








अर्थ :- सत्य की ही जित होती है, झूठ की नही । सत्य से ही परम पिता परमेश्वर तक पहुचते है | सत्य का मार्ग वृस्त्रित होता है, जिसके द्वारा ऋषिगन उस परमात्मा को प्राप्त करना चाहते है, अर्थात अपने आत्मा कल्याण के लिए जिस सत्य मार्ग का ऋषि अनुशरण करते है, वही सत्य इस्वर तक पहुचाने का सच्चा मार्ग है ।






4. यथा नधम स्यन्दमाना समुद्रे,
इक्तम गछन्ति नामरूपे विहाय ।
तथा विद्वानम नामरुपाद विमुक्त,
परात्यर पुरुषमुपैति दिव्यं ।








अर्थ :- जिस प्रकार बहती हुई नदिया समुद्र में मिलने के बाद अस्तित्वहिन हो जाती है, अर्थात अपना नाम रूप त्याग कर समुद्र बन जाती है । उसी प्रकार परम पिता परमेश्वर के दिव्य प्रकाश मिलते ही अपने नाम रूप से मुक्त हो जाती है ।







5. वेदाहमेतम पुरुषम महानतम,
आदित्यवर्णम तमस परस्तात |
तमेव विदित्वति मृत्युमेती,
नान्य पन्था विधेतेडयनाय ।





अर्थ :- वेद आदित्यवर्ण सूर्य के सामान दिव्य रूप में विराजमान है। ज्ञानी जब उसका साक्षात्कार करके अर्थात उस प्रकाश पूर्ण दिव्या स्वरुप वेदरूप ब्रम्हा का ध्यान करके मृत्यु पर विजय प्राप्त करते है, क्योकि इसके अंतर्गत कोई अन्य रास्ता नही है ।






अभ्यास-
1. एकपदेन उत्तर वदत :-





क. हिरणमयेन पात्रेण कस्य मुखम अपिहितम ?
उत्तर -
सत्यस्य






ख. सत्यधर्माय प्राप्तये किम आप्वृणु ?
उत्तर -
पूषन्न






ग. ब्रह्मण मुखम केन आच्छादितमस्ति ?
उत्तर -
हिरणमयेन पात्रेण





घ. महतो महीयान कः
उत्तर -
आत्मा
ङ. अणो अणियान क :
उत्तर -
आत्मा





च . पृथित्यादे महत्परिमानयुक्तात पदार्थत महत्तरः क: ?
उत्तर -
धातुप्रसादतू महिमा तममतुमन:






छ. की दृश: पुरुष: निजेंदियप्रसादात आत्मन: महिमानं पश्यति शोकरहितशच ?
उत्तर -
विद्वान पुरुष:




ज की जयं प्राप्नोति ?
उत्तर -
सत्यम







. कीं जयं न प्राप्नोति ?
उत्तर -
असत्य




ञ. का नाम रुपंच विहाय समुद्रे दस्तं गछति :
उत्तर -
नध:






2. एतेषाम पदयानम प्रथम चरणं मौखिकरूपेण पूर्यत :-






क. हिरणमयेन पात्रेण सत्यस्यपिहितं मुखम |





ख. अणोरनियान- महतो महीयान आत्मस्य जन्तोनी गुहायाम 




ग. सत्यमेव जयते- नानृतम सत्येन पन्था विततो देवया ।




घ. यथा नध: - स्यन्दमाना: समुद्रे दस्तं गछन्ति नामरुपे विहाय |






ङ. वेदाहमैंत - पुरुषं महानतम आदित्यवर्ण: तमसः परस्तात |




3. एतेषा पदानाम अर्थ वदत




अपिहितम ढका हुआ



सत्यधर्माय - सत्यधर्मवान के लिए



अणोरनियान सूक्ष्म से सूक्ष्म






-
:- क्रम बंधन से मुक्त अक्रुतः-


वितशोकः - शोकरहित

विततः - विस्तार होता है


देवयानः देवता को


-
स्यन्दमाना : जाती हुआ



4. स्वरमृत्या कांचित संस्कृत प्रार्थना श्राव्यत



तमेव माता च पिता तमेव,
तमेव वन्धु च सखा तमेवा,
तमेव बिद्या द्रविर तमेव तमेव





अभ्यासः लिखित:-



एकपदेन उत्तर लिखित -




क. सत्यस्य मुखम केन पात्रेण अपिहितम अस्ति ?
उत्तर -
हिरणमयेन




ख. पूषा कसमे सत्यस्य मुखम आपावृणुयात ?|

उत्तर
-
पूषन्न






ग. कः महतो महियाम अस्ति
उत्तर
-
आत्मा





घ. कीं जयते ?
उत्तर
-
सत्यम





ङ - देवयानं पन्था केन विततः अस्ति
उत्तर
-
सत्येन






च. साधक: पुरुष: विदित्वा कम अत्येति ?
उत्तर
-
मृत्युम





छ. नधः के विहाय समुद्रे असतं गच्छन्ति ?
उत्तर -
नामरुपे





2. अधोलिखिताम उदहरनम अनुसृत्व प्रदंतप्रश्ननानाम उत्तरानी पूर्णवाक्येन लिखत -




क. कस्य गुहायाम अणो अणियान आत्मा निहित अस्ति ?







तो गुहायाम अन्नो अणियान आत्मा निहित: अस्ति
विदवान कस्मात विमक्तो भत्वा परात्परं परुषम उपैति ?




विद्वान नामरुपाद विमुक्तो भूत्वा परात्परं पुरुषम उपैति




 ग. आप्तकामा ऋषय: केन पथा सत्यम प्राप्नुवन्ति ?





 आप्तकामा ऋषयः देवयानः पथा सत्यम प्राप्नुवन्ति



3. संधि विच्छेद कुरुतः-




कस्यापिहितं कस्य + अपिहितम



-
अणोरनियान अणोः + अणियान


-
जन्तोनिर्हित जन्तो: + निहित:


-
ह्याप्रकामा हि + आप्राप्तकामा




उपैति -उप + एति



4. रिक्तस्थानीनि पुरयत :-




क. हिरण्मयेन पात्रेण सत्यस्यपिहितं मुखम |



ख. अणोरनियान महतो महीयान |



ग. सत्यमेव जयते नानृतं



घ यथा नध: स्यन्दमाना समुद्रे



.
ङ. तमेव विदिटवाति मृत्युमेति







5. अधोनिदिरष्टना पढ़ाना स्ववाक्येषु प्रयोग कुरुतं






क. सत्यम :- सत्यमेव जयते नानृतम |




ख. सत्यस्य :- सत्यस्य मुखम हिरणमयेन पात्रेण अपिहितम |




ग. गच्छनि :- ते गृहम गच्छन्ति ।




घ. विमुक्त: :- विद्वान नाम रुपाद विमुक्तः




ङ. अन्य :- अन्यः पन्था अयनाय न विदयते ।

############.     The end.       #########.

                        By SUJEET SIR.                           
जिंदगी जीना आसान नहीं होता है  ,
 बिना मेहनत का कोई महान नहीं होता है ।
 जब तक पत्थर पर होथौरा  की चोट ना पड़े ,
 तब तक पत्थर भी भगवान नहीं  होता है ।।